Saturday 4 February 2012

डॉ लखन लाल खरे....


दोस्तों, नमस्ते, इस बार आपकी मुलाकात करा रहा हूँ डॉ लखन लाल खरे जी से | श्री खरे जी शिवपुरी के पास कोलारस तहसील में रहते है पहले एम.ए.फिर पी.एच.डी और पी.एच.डी के बाद शासकीय एस.एम.एस. महाविद्यालय हिंदी के प्रोफ़ेसर है | आप दलित बसंत के संपादक है और ५० से ज्यादा शोध पत्रों का प्रकाशन कर चुके है | शिवपुरी आंचल के सभी समाचर पत्रों के साहित्यक पृष्ठ आपकी रचनाओं के बिना आधुरे से लगते है| आपका लघु शोध प्रबन्ध सामाजिक समरसता में मुसलमान हिंदी कवियों का योगदान एक चर्चित शोध रहा है | ग़ज़ल, गीत या कविता आपकी लेखनी हर विधा में समान ही चलती है| तो दोस्तों प्रस्तुत है डॉ लखन लाल खरे जी की रचनाएं, आप खुद ही अवलोकन करें ---

१. रातरानी ....
रातरानी रात भर महका करेगी,
रात की हर शै उसे सजदा करेगी|

खुश्बुओं की सादगी को अब सताने,
भुत-सी बागड नहीं मटका करेगी|

स्वपन उलझेंगे न टूटे पात जैसे,
नींद पलकों में नहीं अटका करेगी|

चूक गई चिंताओं की किस्तें पुरानी
उम्र खातों में न अब भटका करेगी|

तन-बदन अपना शिकायत से बना है,
जिन्दगी फिर क्या गिले-शिकवा करेगी?

नागाधारी से मिला वरदान जब, तो
शाप की नागीन हमारा क्या करेगी|


२. बैकुण्ठ की बैसाखियों पर ......
जानते थे जिन्हें जिंदा सभी वे तो मरे थे,
जिन्दगी को ढूंढते श्मशान में कुछ सिरफिरे थे|

स्वाद खा-खाकर अपच गमलों-गुलाबों को हुआ है
लग उन्हें तोहमत गयी, जिनने जरा डंठल छुआ है|
पीलिया वंशानुगत था जन्म से, जिसकी जड़ो को
मौत उनकी जब हुई, वे सिर्फ पानी से भरे थे

भुत-प्रेतों में फक़त इस बात पर दंगा हुआ है-
बेचता था जो कफ़न वह आज क्यों नंगा हुआ है ?
कर लिया जिसने अरे तारामती की लाज से
आ न वह हरिचन्द्र जाये-डोम मरघट के डरें थे

प्रश्न पूछा था पिघलती मोम-सा उसने पिता से,
साथ क्या सम्बन्ध है गुमनाम चूल्हे का चिता से ?
लाया लपटों के सवालों पर कहीं माँ जल मरी थी;
पर मिले उत्तर सभी जो, वे बेचारे अधमरे थे |

रात-दिन पानी जिन्हें देते रहे, मुरझा गये वे,
जो दिया उनकी जड़ो को, प्रेम से सब खा गये वे
चेतना का एक भी अंकुर न उनमें फूट पाया-
जो पहाड़ों पर उगे थे, पेड़ वों सारे हरे थे |

जो सफ़र करने चले बैकुण्ठ की बैसाखियों पर
खिल खिलकर वे हँसे अधपेट नंगे पापियों पर
देवदूतों के विमानों में उन्हें जी भर तलाशा,
वे नरक ले द्वार पर बिन साल-संवत् के धरे थे ||    

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