Thursday 1 December 2011

श्री विनय प्रकाश जैन ‘नीरव’


दोस्तों, अभी तक आपने शिवपुरी के शायरों को पड़ा | आज हम एक नव गीतकार की कुछ रचनाएं लेकर आये है | आज के हमारे कवी है श्री विनय प्रकाश जैन नीरव*| श्री नीरव जी की शिक्षक है एक ऐसे कवी भी है जो नव गीतों के माध्यम से समाज की कुरीतियों और दुर्वलताओ को दूर करने का कार्य भी करते है | आप बड़ी ही सरल एवम स्पष्ट भाषा में नव गीत लिखते है| आपके अनेक गीतों का संपादन समय समय पर पत्रिकाओं में होता रहता है | आकाशवाणी पर आप नियमित रूप से सक्रिए रहते है|  
तो दोस्तों प्रस्तुत है श्री विनय प्रकाश जैन नीरव की कुछ रचनाये...
१.हुआ मन....
चिलचिलाती धूप में
कुछ छांव बुनने का
हुआ मन.
चार दीवालें उठाकर
ढूंढ़ते हैं छत
जुगाड़ों में.
गिनतियों में लाभ  था
और हानि थी शायद
पहाड़ों में.
छोड़ निर्मोही शहर को
झोंपड़ी में गीत सुनने का
हुआ मन.
आगत-विगत की
उलझनों में तोड़ता
दम आज है
अब अंधेरों से
लड़ेगा दीप कैसे
तेल का मोहताज है
अर्थ खो बैठी भले ही
वह पुरानी रीत चुनने का
हुआ मन.
जि़न्दगी का अर्थ तो
बन ही न पाई
किताबी ज्ञान की भाषा
सुबह ने उकेरी रेत पर जो
सांझ ने बिलकुल उलटदी
वही परिभाषा
नित नई व्याख्या धरम की
अब स्वयं ही नीति गुनने का
हुआ मन.


२.कटते हुये दिन....
तीज-त्यौहार से
कटते हुये
दिन
बंद आंखें
लोग अंधी दौड़
में शामिल
प्रश्न शूलों से बिंधे
अब कौन
खोजे हल
घर गृहस्थी, हर घड़ी
खटते हुये
दिन
सांस घुटती
दफ्तरों में
फाइलों की गंध
मजबूरियों से
हो गये यूं
ढेर से अनुबंध
किश्त-दर-किश्त उम्र से
घटते हुये
दिन
संबंध रिश्ते
एक उलझे जाल में
फंसता हुआ मन
चिपकी हुई मुस्कान
चेहरों पर नहीं है
शेष अपनापन
व्यर्थ  के इन छलावों में
बढ़ते हुये
दिन.


३.यात्रा कितनी कठिन है....
दूर होती मंजि़लें
यात्रा कितनी कठिन है
इन दिनों
मज़बूरियों से
लड़ रहे हैं लोग
गढ़ता आंख में सपना
हर खुशी
एक हादसा
त्यौहार दुर्घटना
पपड़ायें हुये हैं होंठ
माथे पर शिकुन है
इन दिनों
हाथ उठते भीड़ में
कुछ तालियां हैं
और कुछ नारे
बाकी सभी बुत की तरह
बैठे हुये हैं
थके-हारे
चिन्ह शुभ भी
अपशकुन हैं
इन दिनों
अतिक्रमण पानी हवा पर
क्या हुआ है
गांव में
अब न पहले से
थिरकते धूप के घुंघरू
किरण के पांव में
खलिहान में लपटें
मेड़ पर पसरा रूदन है
इन दिनों

No comments:

Post a Comment