Sunday 13 November 2011

डॉ हरिप्रकाश जैन ‘हरी’



दोस्तों आज आपका परिचय शिवपुरी के एक ऐसे साहित्यकार से कराता हूँ जो अपनी लेखनी से जादू तो करतें ही है साथ ही साथ अपने हुनर से आँखों का इलाज भी करते है जिससे उन्हें पड़ा और समझा जा सके| दोस्तों डॉ हरिप्रकाश जैन एक चिकित्सक होने के साथ साथ एक कवी भी है| आपका जन्म १५ सितम्बर १९५३ को शिवपुरी में हुआ| साहित्य में रंजन कलश शिव सम्मान (२००५) तथा शब्द सारथी (२००८) पानें बाले डॉ हरिप्रकाश जैन जी को चिकित्सा के क्षेत्र में योगदान के लिए म.प्र. के राज्यपाल भी सम्मानित कर चुके है| आप म.प्र. लेखक संघ भोपाल के शिवपुरी इकाई के अध्यक्ष भी रह चुके है एवं उर्दू अदबी संस्था बज्मे-उर्दू के सदस्य है| आपके लेख तथा कविताएं निरंतर पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते है व आकाशवाणी पर भी आप निरंतर सक्रिए रहते है|
तो दोस्तों प्रस्तुत है डॉ हरिप्रकाश जैन जी की कुछ ग़जले .....
१.दर्द सा क्यूँकर हुआ है ....
दर्द सा क्यूँकर हुआ है,
प्यार जब नश्तर हुआ है.

तन्हा तन्हा है बशर अब,
कैसा ये मंज़र हुआ है.

वो  गया देकर मुझे गम,
चैन अब दूभर हुआ है.

हार कर वह जीत जाता,
इस तरह अक्सर हुआ है.

जिन्दगी का सिलसिला भी,
मौत से बदतर हुआ है.

अश्क भी दे दें न धोखा,
किर हरी ये डर हुआ है.

२.काँपते हाथ ने जब माँगी दुआएँ, खैर की........
काँपते हाथ ने जब माँगी दुआएँ, खैर की
वास्ता इससे न था, अपनों की है या गैर की

एक पल में थम गई नफरत की सारी आँधियाँ
दूर फिर जाने लगी सारी घटायें बैर की

प्यार की बारिस से जब तंगदिली मिटने लगी
टूट कर गिरने लगी दीवार घर में बैर की

वह गया फिर से बिछुड़कर दूर मुझसे इस तरह
राह में अब रह गई है, छाप उसके पैर की

३. अब उन्हें, मुझको रुलाना आ गया......
अब उन्हें, मुझको रुलाना आ गया
दुश्मनी जैसे, निभाना आ गया

नाव ने पतवार से फिर यूँ कहा
क्या तुझे भी, रूठ जाना आ गया

आ गया हूँ यूँ मैं उनके सामने
जैसे ज़द पर इक निशाना आ गया

क्यूँ करे बुलबुल यकीं मौसम पे अब
बे-वफ़ाई का ज़माना आ गया

शोख तारों की जो देखीं हरकतें
चाँदनी को मुस्कुराना आ गया

जब हरी बिटिया सियानी हो गई
बाप को माथा झुकाना आ गया

४. क्या अजब मौसम हुआ है.......
क्या अजब मौसम हुआ है
आदमी पूर-गम हुआ है

शाख का ही दर्द बढकर
फूल पर, शबनम हुआ है

मिल गया है साथ उसका
अब सफ़र सरगम हुआ है

जिन्दगी से मौत का भी
फ़ासला कुछ कम हुआ है

उसका अब आँसू बहाना
ज़ख्म पर मरहम हुआ है

है हरी मुश्किल बताना
गम में जो आलम हुआ है 

6 comments:

  1. ITNA GAHRA AART HE IN POETRY KA ..........REALLY TOOO GOOD INPAR COMMENT DENA IMPOSSIBLE HE BHUT KHUB

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  2. आपके माध्यम से डॉ हरी प्रकाश जैन की अच्छी ग़ज़लें पढ़ने को मिलीं | आपको धन्यवाद और डॉ. जैन को बधाई.
    - शून्य आकांक्षी

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  3. Really very good ghazals by Dr. Hari Prakash Jain feeling good after reading this masterpiece by a super fine persona.aapki ghazalein aapki personality reflect karti hain...maine aapki ek aur ghazal pustak,shaakh ka dard padhi hai joki ek shandar ghazal sangrah hai!
    Congrats !!

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  4. i request the owner of this page to kindly post the photograph of hari prakash ji so that people may know him well enough...
    Thanks!

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  5. Real good collection of ghazals papa..
    bahut acha laga inhe padhkar..
    thinking forward to make a separate page for them..
    congrats papa!!
    Prateek

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  6. Congratulations Papa,
    Really Sari ghazale bahut Beautiful aur heart-touching Hai,
    You the Best Poet and gazalkar...
    We love you Papa...
    Neha

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