तो दोस्तों भार्गव जी की कुछ रचनायें प्रस्तुत कर रहा हूँ , आप भी पढ़िए और बताईये कैसी है .....
१. द्वार द्वार तक दस्तक दी है......
द्वार द्वार तक दस्तक दी है, हर दरवाजा बन्द मिला है|
अनुभव की दीवार ढही है,
आस्थावान कंगूरे झुक गये|
विचारवान गुंजो वाले,
कक्ष धुल धूसरित हो गये|
तुम तो नारों की कहते हो, खंड खंड हो गया किला है||
जाने कैसी हवा चली है,
मन पंछी बौराया सा है|
चारों और भटकते बादल,
जाने इनका क्या खोया है|
जाने इनका क्या खोया है|
तुम सूरज की बात कर रहे, तारा एक नहीं निकला है||
कैसा ज्वार उठा अंतर में,
कैसा ये तूफ़ान उठा है|
साहस की पतवार खो गई,
माझी ताकता लुटा-लुटा है
तुम नदिया की बात कर रहे, सागर तक ने विश उगला है||
तुम नदिया की बात कर रहे, सागर तक ने विश उगला है||
जिसको अपनी धरती समझा,
बह सपनों का देश हो गया |
क्यों बैठे बिठलाये इनको,
अपनों से विद्वष हो गया|
आब तो सब कुछ समझ चूका हूँ, आज किसी से नहीं गिला है||
२. मैनें जितने गीत लिखे है .......
मैनें जितने गीत लिखे है, उनमें मेरा एक नहीं है,
जितनी पंक्ति है सब मेरी, उनमें भाव तुम्हारें ही है||
मैं अलमस्त गवैया, लेकिन मेरी अपनी तान नहीं है|
मैं सड़को पर गाता फिरता, मेरी कोई शान नहीं है||
दुनिया के मेले में जो भी, बाजी जीती या हारी,
उसमे यत्न नहीं है मेरा, वे सब दाव तुम्हारे ही है||
मेरे सीने में व्यथा तुम्हारी, दिल में जितने भी छाले है|
पीर बटाने हेतु तुम्हारी, हँसते हँसते ही पालें है||
मेरे गीतों की नदियों में, बहता दर्द नहीं है मेरा,
बहती जहाँ फुटकर पीड़ा, वे सब घाव तुम्हारे ही है||
लोग बढ़ावा देते मुझको, मै तो एक निमित्त मात्र हूँ|
इतना यश सहेज कर रख लूँ, ऐसा नहीं सुयोग्य पात्र हूँ||
इस नादान उम्र ने खुशियाँ और ग़म जितने पाले हैं,
मेरी रूचि नहीं है उनमे, वे सब छाव तुम्हारें ही है||